Followers

Monday, December 20, 2010

आपकी आंखों में नमी भर दी !

आपकी आंखों में नमी भर दी !
बेगुनाहों ने मर के हद कर दी

उग के सूरज ने धूप क्या कर दी
ज़र्द चेहरों की बढ़ गयी ज़र्दी

आप अगर मर्द हैं तो खुश मत हों
काम आती है सिर्फ़ नामर्दी

फिर कहीं बेकसूर ढेर हुए
आज कितनी अकड़ में है वर्दी

आदमी हूँ, मुझे भी खलता है
पेड़ पौधों से इतनी हमदर्दी!

और बेटी का बाप क्या करता
अपनी पगडी तो पाँव में धर दी

अभी तुम्हारी ज़मीं से ऊपर उड़ान है ना

अभी तुम्हारी ज़मीं से ऊपर उड़ान है ना
पलट के आना है फिर यहीं पर, ये ध्यान है ना

यहाँ पे खेती, सयानी बेटी, हैं एक जैसी
दहेज़ भी तो समाज में अब लगान है ना

भरी है मण्डी, सजी दुकानें मगर इधर वो
उगा के फसलें पड़ा है भूखा, किसान है ना

गुलाम क़दमों तले पड़ा था, पर उसका बेटा
उबल पड़ा, नासमझ है थोड़ा, जवान है ना

तमाम चर्चे, तमाम खर्चे, तमाम कर्जे
मगर हमारा वतन अभी तक महान है ना ।

एक झूठा वकार है तो रहे

एक झूठा वकार है तो रहे
कोई ईमानदार है तो रहे

जितने होने थे हो चुके हमले
शहर अब होशियार है तो रहे

देख, दामन पे कितने धब्बे है
जिस्म अगर शानदार है तो रहे

हाल औरों का सोच ले, तुझ पर
सच अभी तक सवार है तो रहे

आपको इस घने कुहासे में
धूप का इन्तिज़ार है तो रहे

फूल पौधे झुलस गए कब के
अब चमन में बहार है तो रहे

कुछ कहो, दांत होते हैं बत्तीस
इक जुबां धारदार है तो रहे